ನಿರಂತರ ಕಾಡುವ ಕವಿತೆಗಳು

ನಿರಂತರ ಕಾಡುವ ಕವಿತೆಗಳು

 

पुष्प की अभिलाषा
By माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi)
 
 
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ
 
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ
 
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ
 
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ
 
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
 
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।
Rating
No votes yet